चुनाव से क्या अभिप्राय है
- किसी फैसले को लेने में सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते हैं इसलिए जनता जिस प्रक्रिया के द्वारा अपने नेता ( प्रतिनिधि ) को चुनती है यह प्रक्रिया चुनाव कहलाती है
- चुनाव प्रक्रिया द्वारा जनता जिस व्यक्ति को चुन कर संसद या विधानसभा में भेजती हैं
- उस व्यक्ति को जनता का प्रतिनिधि कहते हैं।
- यह नेता जो जनता द्वारा चुन कर संसद जाते हैं यह जनता का प्रतिनिधित्व करते है और जनता के कल्याण के लिए नीतियों का निर्माण करते है , देश के लिए कानून बनाते है
लोकतंत्र के प्रकार
1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता रोजमर्रा के फ़ैसलों और सरकार चलाने में सीधे भाग लेते हैं।
- प्राचीन यूनान के की स्थानीय सरकारें, खास तौर से ग्राम सभाएँ, प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के निकटतम उदाहरण हैं।
2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
- लेकिन जब लाखों और करोड़ों लोगों को फैसला लेना हो, तो प्रत्यक्ष लोकतंत्र को व्यवहार में नहीं लाया जा सकता।
- इसलिए जनता के शासन का अर्थ सामान्यतः जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा चलने वाले शासन से है।
चुनाव आयोग
Election Commission Of India
- भारत में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग है
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 में निर्वाचन आयोग का वर्णन है
- भारत के निर्वाचन आयोग की मदद करने के लिए हर राज्य में एक मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है
- निर्वाचन आयोग स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए जिम्मेदार नहीं होता इसके लिए राज्यों में राज्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं जो निर्वाचन आयोग से अलग कार्य करते हैं
- भारत का चुनाव आयोग बिना किसी दबाव के काम करता है चुनाव आयोग में 3 सदस्य निर्वाचन आयुक्त होंगे एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त , दो निर्वाचन आयुक्त
- पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे
- वर्तमान में चुनाव आयुक्त राजीव कुमार है
चुनाव आयोग के कार्य
- मतदाता सूची तैयार करना
- चुनाव का संचालन करना
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना
- आचार संहिता जारी करना
- राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिन्ह जारी करना
- राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण करना
- चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के द्वारा खर्च की जाने वाली राशि की सीमा तय करना
चुनाव प्रणाली के दोष
- चुनाव में अधिक धन खर्च करना
- चुनाव के दौरान वोटों की खरीदा फरोत की जाती है
- चुनाव के दोरान अक्सर जाति और धर्म के नाम पर वोट माँगना
- राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भागीदारी ने चुनावो का अपराधीकरण किया है
- लुभावने वादे करके सत्ता प्राप्त करना
- चुनाव में हिंसा का प्रयोग करना जिससे जान और माल की हानि होती है और अव्यवस्था फैलती है
- वोट के बदले पैसे , वस्तुओं , या अन्य प्रकार के लालच देना
चुनाव सुधार के सुझाव
- सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली के स्थान पर समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू करना चाहिए
- इससे राजनीतिक दलों को उसी अनुपात में सीटें मिलेंगी जिस अनुपात में उन्हें वोट मिलेंगे
- संसद और विधानसभा में एक तिहाई सीटों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाये
- यदि किसी उम्मीदवार के विरुद्ध कोई क्रिमिनल केस है तो उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए
- राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने के लिए कानून होना चाहिए
- चुनाव प्रचार में जाति और धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर देना
- चुनावी राजनीति में धर्म के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए कठोर प्रावधान होने चाहिए
भारत में चुनाव व्यवस्था
- भारत एक लोकतांत्रिक देश है
- यहां चुनाव निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से होता है
- भारत के संविधान में चुनाव संचालन की पूरी व्यवस्था का विस्तृत वर्णन मौजूद है
- भारत में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग Election commission एक स्वतंत्र संस्था है
भारत में दो प्रकार की चुनाव व्यवस्था है
1. सर्वाधिक मत के आधार पर जीत जो सबसे आगे वही जीते
(First past the post system)
- इस व्यवस्था में जिस उम्मीदवार को अन्य सभी उम्मीदवारों से अधिक वोट मिल जाते हैं उसे ही विजयी घोषित कर दिया जाता है।
- विजयी प्रत्याशी के लिए यह ज़रूरी नहीं कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले।
- इस विधि को 'जो सबसे आगे वही जीते' प्रणाली (First past the post system ) कहते हैं।
- इसे बहुलवादी व्यवस्था भी कहते हैं।
- संविधान इसी विधि को स्वीकार करता है।
- भारत में विधान सभा , लोकसभा के चुनाव इसी प्रणाली पर होते है
2. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली या समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
- समानुपातिक प्रतिनधित्व प्रणाली
- भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्त्व प्रणाली को केवल अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए ही सीमित रूप में अपनाया है।
- भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्य सभा और विधान परिषदों के चुनावों के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का उपयोग किया जाता है
सर्वाधिक मत के आधार पर जीत और समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में अंतर
👉सर्वाधिक मत के आधार पर जीत
- पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं?
- हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
- मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है।
- पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती है।
- विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं कि वोटों का बहुमत (50%+1) मिले
- उदाहरण - UK और भारत
👉समानुपातिक प्रतिनधित्व प्रणाली
- किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है। पूरा का पूरा देश एक निर्वाचन क्षेत्र गिना जा सकता है।
- एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।
- मतदाता पार्टी को वोट देता है।
- हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।
- विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत हासिल होता है।
- उदाहरण - इज़राइल और नीदरलैंड
भारत में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को ही क्यों लागू किया गया
- एकल संक्रमणीय मत प्रणाली की प्रक्रिया काफी जटिल है यह किसी छोटे देश में तो लागू हो सकती है
- लेकिन भारत जैसे विशाल देश में नहीं।
- सर्वाधिक वोट से जीत वाली व्यवस्था की सफलता इसकी लोकप्रियता का कारण है।
- उन मतदाताओं के लिए जिन्हें राजनीति और चुनाव का विशेष ज्ञान नहीं है, उसके लिए पूरी चुनाव व्यवस्था को समझना सरल है।
निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण
- सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली में किसी निर्वाचन क्षेत्र में जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिल जाता है उसे ही विजयी घोषित कर दिया जाता है। इससे छोटे-छोटे सामाजिक समूहों का अहित हो जाता है।
- यह भारतीय सामाजिक परिवेश में और अधिक महत्त्वपूर्ण है। हमारे यहाँ जाति आधारित भेदभाव का इतिहास रहा है।
- ऐसी सामाजिक व्यवस्था में, सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली का परिणाम यह होगा कि दबंग सामाजिक समूह और जातियाँ हर जगह जीत जायेंगी और उत्पीड़ित सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो पायेगा।
- हमारे संविधान निर्माता इस कठिनाई को जानते थे और ऐसे दलित उत्पीड़ित सामाजिक समूहों के लिए उचित और न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता समझते थे।
- स्वतंत्रता के पहले भी इस विषय पर बहस हुई थी और ब्रिटिश सरकार ने 'पृथक निर्वाचन मंडल' की शुरूआत की थी।
- इसका अर्थ यह था कि किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के लोग वोट डाल सकेंगे।
- संविधान सभा के अनेक सदस्यों को इस पर शंका थी। उनका विचार था कि यह व्यवस्था हमारे उद्देश्यों को पूरा नहीं करेगी। इसलिए, आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था को अपनाया गया।
- इस व्यवस्था के अंतर्गत, किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता वोट तो डालेंगे लेकिन प्रत्याशी केवल उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होगा जिसके लिए वह सीट आरक्षित है।
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार
- भारत में सभी नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्राप्त है अर्थात भारत के सभी नागरिक मतदान कर सकते हैं
- चाहे वह किसी भी धर्म , जात , समुदाय , रंग रूप , वेशभूषा के हों
- जो 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकें है वह मतदान कर सकते हैं
- 1989 तक 21 वर्ष की आयु तक के नागरिकों को वोट देने का अधिकार होता था
- लेकिन 1989 में संविधान में संशोधन करके इस उम्र को घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया
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